यादें रेडियो की.....
बात सन् 1980-83 के आसपास की है। मैं उस समय शिवपुरी में था। यहाँ बहुत ही अच्छा साहित्यिक माहौल था। श्रद्धेय श्री रामकुमार चतुर्वेदी "चंचल", डा. परशुराम शुक्ल "विरही" एवं श्री विद्यानंदन राजीव जी जैसे मूर्धन्य कवियों के बीच यहाँ का कवितामय परिवेश अपने चरम पर था। आये दिन कवि-गोष्ठियां और सम्मेलन होते रहते थे। इसी समय मेरा पहला कविता-संकलन "आईना चटक गया" वर्ष 1983 प्रकाशित हुआ।
इस चर्चा को मैं बाद में विस्तार से आगे बढ़ाऊंगा। पहले यहाँ पर मैं अपने आकाशवाणी नाटक लेखन की चर्चा करूँगा।
मैं छोटे बच्चों के नाटक लिखता था। मैंने रेडियो के लिए भी एक-दो पांडुलिपि लिखीं। कभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तो कभी सरकारी काम से भोपाल आना-जाना लगा रहता था।
अतः अपनी पांडुलिपि लेकर आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र पहुंचा। उस समय वहाँ सुश्री मीनाक्षी मिश्रा जी नाटक विभाग में कार्यक्रम अधिकारी थीं। मैं उनसे मिला और अपना परिचय देकर अपनी पांडुलिपि उन्हें दिखाई।
उन्होंने सरसरी दृष्टि पांडुलिपि पर डाली और प्रसन्नता से बोली, मुझे तुम्हारा प्रयास अच्छा लगा। फिर उन्होंने मुझे लगभग आधा घंटे रेडियो नाटक की बारीकियों के बारे में समझाया। साथ ही ये भी कहा, कि पता नहीं मेरे समझाने के बाद भी कोई मेहनत क्यों नहीं करता...।
मैं उनकी बातों से बहुत प्रभावित हुआ, और उनसे कहकर आया, कि मुझसे आपको निराश नहीं होना पड़ेगा। उनके कहे शब्द अभी भी मेरे कान में कभी-कभी गूंजते हैं।
और मैंने अपना पहला रेडियो नाटक "भटकने से पहले" लिखा। उस समय मैं ग्वालियर आ गया था, और संयोग से ग्वालियर आकाशवाणी केंद्र पर नाटक विभाग शुरू हो गया था। अतः पांडुलिपि भोपाल की जगह ग्वालियर ही भेजनी पड़ी।
मेरी पांडुलिपि स्वीकृति हुई और दिनांक 20 जनवरी, 1985 को नाटक का प्रसारण भी हो गया। उस समय वहाँ कार्यक्रम अधिकारी थे श्री लक्ष्मण मंडरवाल जी। इस नाटक के लिए मुझे रुपये 250.00 फीस के रूप में मिले थे।
संयोग कहें या परिस्थिति, मैं अपने पहले नाटक को सुन नहीं सका। बाद में भी प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सका।
फिर मैंने उसी पांडुलिपि को विस्तृत विवरण और अनुबंध की प्रति सहित आकाशवाणी के छतरपुर केंद्र भेजा। वहाँ से मेरी पांडुलिपि स्वीकृत हुई और आकाशवाणी छतरपुर द्वारा वहाँ अपने कलाकारों से वह नाटक तैयार कर दिनांक 21 सितंबर, 1986 को प्रसारित किया गया। प्रस्तुतकर्ता थे श्री अरुण दुबे जी। उस समय श्री इलाशंकर गुहा जी वहाँ कार्यक्रम अधिकारी थे। इस नाटक के पुनः प्रसारण की फीस के रूप में मुझे रुपये 62.50 प्राप्त हुए थे।
इस प्रकार में आकाशवाणी छतरपुर से प्रसारित अपने पहले नाटक को ग्वालियर में सुन सका और रिकॉर्ड भी किया। जो कि 35 वर्ष बाद मैंने अभी यूट्यूब पर साझा किया है।
मेरा पहला रेडियो नाटक
बात सन् 1980-83 के आसपास की है। मैं उस समय शिवपुरी में था। यहाँ बहुत ही अच्छा साहित्यिक माहौल था। श्रद्धेय श्री रामकुमार चतुर्वेदी "चंचल", डा. परशुराम शुक्ल "विरही" एवं श्री विद्यानंदन राजीव जी जैसे मूर्धन्य कवियों के बीच यहाँ का कवितामय परिवेश अपने चरम पर था। आये दिन कवि-गोष्ठियां और सम्मेलन होते रहते थे। इसी समय मेरा पहला कविता-संकलन "आईना चटक गया" वर्ष 1983 प्रकाशित हुआ।
इस चर्चा को मैं बाद में विस्तार से आगे बढ़ाऊंगा। पहले यहाँ पर मैं अपने आकाशवाणी नाटक लेखन की चर्चा करूँगा।
मैं छोटे बच्चों के नाटक लिखता था। मैंने रेडियो के लिए भी एक-दो पांडुलिपि लिखीं। कभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तो कभी सरकारी काम से भोपाल आना-जाना लगा रहता था।
अतः अपनी पांडुलिपि लेकर आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र पहुंचा। उस समय वहाँ सुश्री मीनाक्षी मिश्रा जी नाटक विभाग में कार्यक्रम अधिकारी थीं। मैं उनसे मिला और अपना परिचय देकर अपनी पांडुलिपि उन्हें दिखाई।
उन्होंने सरसरी दृष्टि पांडुलिपि पर डाली और प्रसन्नता से बोली, मुझे तुम्हारा प्रयास अच्छा लगा। फिर उन्होंने मुझे लगभग आधा घंटे रेडियो नाटक की बारीकियों के बारे में समझाया। साथ ही ये भी कहा, कि पता नहीं मेरे समझाने के बाद भी कोई मेहनत क्यों नहीं करता...।
मैं उनकी बातों से बहुत प्रभावित हुआ, और उनसे कहकर आया, कि मुझसे आपको निराश नहीं होना पड़ेगा। उनके कहे शब्द अभी भी मेरे कान में कभी-कभी गूंजते हैं।
और मैंने अपना पहला रेडियो नाटक "भटकने से पहले" लिखा। उस समय मैं ग्वालियर आ गया था, और संयोग से ग्वालियर आकाशवाणी केंद्र पर नाटक विभाग शुरू हो गया था। अतः पांडुलिपि भोपाल की जगह ग्वालियर ही भेजनी पड़ी।
मेरी पांडुलिपि स्वीकृति हुई और दिनांक 20 जनवरी, 1985 को नाटक का प्रसारण भी हो गया। उस समय वहाँ कार्यक्रम अधिकारी थे श्री लक्ष्मण मंडरवाल जी। इस नाटक के लिए मुझे रुपये 250.00 फीस के रूप में मिले थे।
संयोग कहें या परिस्थिति, मैं अपने पहले नाटक को सुन नहीं सका। बाद में भी प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सका।
फिर मैंने उसी पांडुलिपि को विस्तृत विवरण और अनुबंध की प्रति सहित आकाशवाणी के छतरपुर केंद्र भेजा। वहाँ से मेरी पांडुलिपि स्वीकृत हुई और आकाशवाणी छतरपुर द्वारा वहाँ अपने कलाकारों से वह नाटक तैयार कर दिनांक 21 सितंबर, 1986 को प्रसारित किया गया। प्रस्तुतकर्ता थे श्री अरुण दुबे जी। उस समय श्री इलाशंकर गुहा जी वहाँ कार्यक्रम अधिकारी थे। इस नाटक के पुनः प्रसारण की फीस के रूप में मुझे रुपये 62.50 प्राप्त हुए थे।
इस प्रकार में आकाशवाणी छतरपुर से प्रसारित अपने पहले नाटक को ग्वालियर में सुन सका और रिकॉर्ड भी किया। जो कि 35 वर्ष बाद मैंने अभी यूट्यूब पर साझा किया है।