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आकाशवाणी नाटक
‘‘धर्मसंकट’’
यह नाटक एक ऐसे युवक की कहानी है, जिसका कुछ समय पहले ही विवाह हुआ होता है। वह आॅफिस में कार्य अधिक होने के कारण अपनी पत्नी को हनीमून पर घुमाने नहीं ले जा पाता। इससे उसकी पत्नी झगड़ा कर अपने मायके चली जाती है। वह परेशान रहने लगता है और अपने दोस्त को भी कभी विवाह न करने की सलाह देता है।
मायके में उसकी माँ अपनी बेटी का पक्ष लेती है और पिता उसे वापस अपने पति के पास लौटने हेतु समझाते हैं। बाद में घटनाक्रम के चलते दोनों फिर मिल जाते हैं। दोनों को समझ में आ जाता है कि पति-पत्नी को समय एवं परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेने चाहिए। अंत में वह अपने दोस्त से भी कहता है कि उसे भी विवाह कर लेना चाहिए, वह समझ चुका है कि पति-पत्नी में ये नोंक-झोंक तो चलती ही रहती है।
यह नाटक दिनांक 13 जून 1995 को आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र से प्रसारित किया गया था। प्रस्तुतकर्ता थे श्री शाकिर अली।
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