शनिवार, 7 मार्च 2020

काव्य-संग्रह ‘‘कहीं कुछ नहीं काँपता’’ लोकार्पण भाग-2 KAVITA-SANGEET G...



मेरे संग्रह से......

‘‘कविता-संगीत गोष्ठी’’
काव्य-संग्रह ‘‘कहीं कुछ नहीं काँपता’’ लोकार्पण एवं शास्त्री नित्य गोपाल कटारे अभिनंदन समारोह भाग-2
              आज मैं आपके समक्ष 22 वर्ष पूर्व 1 फरवरी, 1998 बसंत पंचमी के अवसर पर प्रखर सांस्कृतिक संस्थान एवं शिव संकल्प साहित्य परिषद, होशंगाबाद (नर्मदापुरम्) के संयुक्त तत्वावधान में श्री दुर्गेश गुप्त ‘राज’ के काव्य-संग्रह ‘‘कहीं कुछ नहीं काँपता’’ का लोकार्पण एवं वरिष्ठ साहित्यकार शास्त्री श्री नित्य गोपाल कटारे जी का अभिनंदन समारोह की रिकार्डिंग के अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ।

            इस कार्यक्रम का भाग-एक, जिसमें विमोचन एवं अभिनंदन की विस्तृत रिकार्डिंग थी, पहले ही प्रस्तुत कर चुका हूँ। ये कार्यक्रम का दूसरा भाग है। कार्यक्रम के इस दूसरे भाग में कविता एवं संगीत गोष्ठी का मिला-जुला आयोजन रखा गया था। इस गोष्ठी का प्रभावपूर्ण संचालन वरिष्ठ साहित्यकार नगरश्री पं. गिरि मोहन गुरु जी द्वारा किया गया था।

           इस गोष्ठी का शुभारंभ शास्त्री नित्य गोपाल कटारे एवं श्री प्रदीप दुबे जी के बसंत पर लिखे हिंदी गीत की संगीतमय प्रस्तुति से हुआ। इसके बाद प्रखर सांस्कृतिक संस्थान के अध्यक्ष श्री प्रवीण दुबे जी द्वारा संगीतमय विरह गीत प्रस्तुत किया। गोष्ठी में भोपाल से पधारे हुए शायर काजिम रजा राही जी द्वारा अपनी श्रेष्ठ रचनाओं का पाठ किया। उनके काव्य-पाठ के उपरांत युवाकवि श्री स्वस्तिक तिवारी ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। इसके बाद पुनः संगीतमय प्रस्तुति के तहत श्री लक्ष्मीनारायण शर्मा जी द्वारा अपना बांसुरी वादन प्रस्तुत किया। उनके द्वारा बांसुरी पर ‘‘श्याम चले यमुना किराने..’’ पुराने गीत की धुन बांसुरी पर बजाई, जिसे सुनकर श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गये।

           कविता एवं संगीत की इस मिली-जुली गोष्ठी के अगले क्रम में कवि श्री अरविन्द सागर जी द्वारा अपनी कविताएं सुनाईं गई। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए संचालक महोदय द्वारा श्री एन.के. शर्मा जी को आमंत्रित किया, उनके द्वारा एक संगीतमय लोकगीत प्रस्तुत किया गया।

           लोकगीत के बाद श्रीमती गीता गुप्ता का काव्य-पाठ और इसके उपरांत इटारसी से पधारे वरिष्ठ कवि श्री संतोष इंकलाबी जी द्वारा सरस्वती वंदना एवं अपनी लोकप्रिय कविता ‘‘मेला में ठेला’’ श्रोताओं को सुनाई। श्री इंकलाबी जी की रचना पाठ के बाद श्री नवीन दुबे ‘निरंकुश’ द्वारा तुलसीदास जी के ऊपर लिखित अपनी चर्चित कविता का पाठ किया। इन्हें खूब सराहा गया। इसके बाद नगरश्री पं. गिरि मोहन गुरु जी द्वारा अपनी रचनाओं का पाठ किया और अंत श्री प्रदीप दुबे जी द्वारा ‘‘तेरी अठखेलियां तन्हाइयों में याद आती हैं’’ एवं ‘‘चेहरे पर झुर्रियां हैं, आईने पर गर्द है’ गीतों की संगीतमय प्रस्तुति दी गई। इस प्रकार संगीतमय प्रस्तुति के साथ इस कार्यक्रम का समापन हुआ।

            मेरे संग्रह में उपलब्ध कैसेट में गोष्ठी के यही अंश मिल सके। निश्चित है कुछ कवियों की कविताएं छूट गई हों, इसके लिये क्षमा चाहता हूँ।

-दुर्गेश गुप्त ‘राज’

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